मित्रों से न मिल पाने की कसक

इस महामारी ने क्या कर दिया, 

पढ़ने-लिखने व खेल-कूद का अंदाज़ ही बदल दिया |

मैंने कभी न सोचा था कि मित्रों से नहीं मिल पाऊँगी,

खेल कूद कर, उछल कूदकर मौज मस्ती नहीं कर पाऊँगी |

नहीं सुबह की चहल-पहल,
ना छुट्टी का शोर शराबा,

ना ही रेसेस की धमाचौकड़ी,
ना ही एक दूसरे के कान में फुसफुसाना | 

गेम्स के पीरियड की मस्ती तो जैसे मैं गई हूँ भूल, वो दौड़ लगाना, उधम मचाना और अध्यापिका की डाँट खाना |

याद बहुत आती है मुझको मित्रों के साथ साँठ गाँठ,

वो खाने के समय के ठहाके,

श्रिया का ढोकला,

व आदि के परांठे, 

पंखुरी का नींबू पानी 

और हविशा की शैतानी | 

घर में  रहकर बोर हो गए, कैसे रहे हम कूल |

हे भगवन सुन लो बच्चों की,

जल्दी खोल दो स्कूल,
जल्दी खोल दो स्कूल |

~ मन्नत कौर

Comments

  1. अतिउत्तम! उत्कृष्ट लेखन!

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    1. Thank you so much Vidushi. Always a pleasure to hear from you. Do check out some of my other posts as well.

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